Monday, July 7, 2008


दफन थी शायद इरादों में कोई चिंगारी

इस शहर को लग गई दंगो की बीमारी



बच्चें बिलखते रहे माँ की गोद में,

नफ़रत की फ़िर भी टूटी नही खुमारी



हर एक के हाथों में है तयशुदा पत्थर,

हर एक को चाहिए ज़ख्म में हिस्सेदारी



इस शहर की चौतरफा हो नुमाइश,

कर ली है हर घर ने इस की तैयारी

- मृत्युंजय यकरंग, इंदौर