दफन थी शायद इरादों में कोई चिंगारी
इस शहर को लग गई दंगो की बीमारी
बच्चें बिलखते रहे माँ की गोद में,
नफ़रत की फ़िर भी टूटी नही खुमारी
हर एक के हाथों में है तयशुदा पत्थर,
हर एक को चाहिए ज़ख्म में हिस्सेदारी
इस शहर की चौतरफा हो नुमाइश,
कर ली है हर घर ने इस की तैयारी
- मृत्युंजय यकरंग, इंदौर
1 comment:
मृत्युंजय भाई;
आपकी ग़ज़ल बहुत कुछ कहती है अपने शहर के बारे में.उम्मीद करें हमारा प्यारा शहर यकरंग
हो जाए फ़िर से.
संजय
९७५२५-२६८८१
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