हमने कब रिवाजों की परवाह की है
बस वक्त के इशारो की परवाह की है |
जिनके सिरों पर अब बाम नही ,
किसने ऐसी दीवारों की परवाह की है |
वैसे तो था नही मै तेरा मकरूज़ ,
फ़िर भी तेरे तकाजों की परवाह की है |
ये अंधेरे ये बेबसी मेरे नही है
मैने तेरे ही ख्यालों की परवाह की है |