किस्सा तो मुख्तसर सा है कोई सुने तो,अल्लाह गुजरा बहुत नशाइस्ता मुझपे उसने भी माना एहसानों के हिसाबो-खितब उंगलियों पे उनके, गर्दिशे -पैहम मे हर ठिकाना था मुस्तहिल, कभी छुटा कोइ शहर कभी कोई मुहल्ला ।
पुछा रोज फ़रिश्तो से कब करोगे,बिस्मिल्लाह् ।
होता कहॉ है मगर तक्दीरों मे कोई, इस्लाह।
बेखबर हम सब कुछ करते रहे,लिल्लाह।
Thursday, October 30, 2008
मुहल्ला
किस की शिकायत
किस की शिकायत, किस की सुनवाई
हर तरफ चोर, हर जगह मौसेरे भाई
मुठ्ठियाँ भिचे वो खड़ा है तुमपे ,
क्यों उसको उसकी पीठ दिखाई
किसी तरह बंगला-गाड़ी हो जाए
बड़ी कंगली है ये हलाल की कमाई
उन हाथों के निचे अब सर झुकते है,
जिन हाथों की खुलनी थी कलाई
जाने कैसा फरेब था उस की कहानी में,
साथ हँसने लगे तो आखें भर आई
हर तरफ चोर, हर जगह मौसेरे भाई
मुठ्ठियाँ भिचे वो खड़ा है तुमपे ,
क्यों उसको उसकी पीठ दिखाई
किसी तरह बंगला-गाड़ी हो जाए
बड़ी कंगली है ये हलाल की कमाई
उन हाथों के निचे अब सर झुकते है,
जिन हाथों की खुलनी थी कलाई
जाने कैसा फरेब था उस की कहानी में,
साथ हँसने लगे तो आखें भर आई
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