Thursday, February 5, 2009

हवाला

घर में उन चारों के अतिरिक्त
रहती है एक - डायरी |
जिस में मिलता है -रोज की सब्जी की कीमते \
\दूध का हिसाब\
परचूनी क्रय \माँ की गठिया की दवाई का मूल्य,
और पिताजी की ऐनक की मरम्मत का खर्च का हिसाब
डायरी के पन्ने
महीने भर के खर्च का हिसाब
रखते है बड़ी सावधानी से,
फ़िर भी न जाने कैसे ? उसमे
नई साडीयो की सिलवटे\
लिपस्टिक के शेड्स\मंहगे क्रीमों की तीक्ष्ण गंध
सिगरेट के छल्लों और सप्ताह के आख़िर मे
रेस्तरा का बिल\
मल्टीप्लेक्स के दो आधे टिकटों सहित नदारद है ,
घर की कोई डायरी
इन का हवाला नही देती !

1 comment:

daanish said...

नैतिकता और संस्कारों की गिरती साख का
भरपूर लेखा-जोखा, बदले हुए सामाजिक सरोकार, और परिस्थति-जन्य चिंता ......
हर बात तो है आपकी इस डायरी में.....
सच-मुच ! आज की सोच को बड़ी बारीकी से पकड़ने की सफल कोशिश की है आपने....
साधुवाद स्वीकारें . . . . .
---मुफलिस---