उठती है निगाह जिधर बाज़ार नज़र आता है |
कोई बिकता हुआ कोई खरीदार नज़र आता है |
सिर्फ जरूरतों के उसूल पर जीता है जमाना ,
जो न किसी काम का वो बेकार नज़र आता है |
आते-जाते हर शख्स की है निगाह मुझ पर,
शायद मुझमे कोई कारोबार नज़र आता है |
ख्वाहिशो के दश्त में हर आदमी गुम है,
रूह है गिरवी जेबों में उधार नज़र आता है |
1 comment:
सिर्फ जरूरतों के उसूल पर जीता है जमाना ,
जो न किसी काम का वो बेकार नज़र आता है
bahut hi umdaa aur steek sher
kahaa hai ...aaj ke halaat ki numaaeendgi kartaa hua
badhaaee
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