Monday, October 6, 2014

इन दिनों

दिन गुज़र रहे है
कुछ एेसे
अहसासों के तले-
हाथों में लगता
घुल रही है
जैसे तेरे हाथों की महक,
कभी लगता है,
छत पे खड़ी अकेली धूप बुला रही है मुझे,
कभी होती है मेरे करीब
तेरे कदमों की आहट,
और
यूँ भी लगता कभी
'मत्था टेकने ' साथ मेरे झुका है कोई।
खुद के गुम होने / किसी का खुद मे होने के अहसास में,
दिन गुजर रहे है
कुछ ऐसे इन दिनों। 

Tuesday, September 23, 2014


||ख़ामोशी||
कोई वजहा थी ,
या नहीं
उसके आने की ..
मैंने पूछा नहीं ............
क्यूँ ? देर तक ठहर गई 
मुझमे
उसने भी बताया नहीं |
मगर, जाते -जाते
इतना जरुर कह गई " ख़्याल रखना अपना "
कैफियत
हर लम्हा
यँहा ज़ाहिर करनी है तुम्हे
यँहा हर रिश्ता मोहताज़ है
अल्फ़ाजों का,
कोई मेरी तरह सुन सके तुम्हे
बेशक तब मेरा दायरा 
तुम तोड़ देना |