||ख़ामोशी||
कोई वजहा थी ,
या नहीं
उसके आने की ..
मैंने पूछा नहीं ............
क्यूँ ? देर तक ठहर गई
मुझमे
उसने भी बताया नहीं |
मगर, जाते -जाते
इतना जरुर कह गई " ख़्याल रखना अपना "
कैफियत
हर लम्हा
यँहा ज़ाहिर करनी है तुम्हे
यँहा हर रिश्ता मोहताज़ है
अल्फ़ाजों का,
कोई मेरी तरह सुन सके तुम्हे
बेशक तब मेरा दायरा
तुम तोड़ देना |
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