Monday, October 6, 2014

इन दिनों

दिन गुज़र रहे है
कुछ एेसे
अहसासों के तले-
हाथों में लगता
घुल रही है
जैसे तेरे हाथों की महक,
कभी लगता है,
छत पे खड़ी अकेली धूप बुला रही है मुझे,
कभी होती है मेरे करीब
तेरे कदमों की आहट,
और
यूँ भी लगता कभी
'मत्था टेकने ' साथ मेरे झुका है कोई।
खुद के गुम होने / किसी का खुद मे होने के अहसास में,
दिन गुजर रहे है
कुछ ऐसे इन दिनों। 

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