बदहवास कोसी ...
बच्चे बूढे,
कच्चे चूल्हे /
घास के पुले,
कपड़े जूते/ टपरा,
बछिया,
आगन से खटिया /
रूपया, धान,
हदों के निशान /
बड़ी - पापड़
चिट्ठी पत्तरबच्चे बूढे,
कच्चे चूल्हे /
घास के पुले,
कपड़े जूते/ टपरा,
बछिया,
आगन से खटिया /
रूपया, धान,
हदों के निशान /
बड़ी - पापड़
मिट्टी के खिलोने ,
बिस्तर -बिछौने
आले की लालटेन
खुटी से बस्ते कापी ,पेन
बदहवास 'कोसी' ले गई कितना कुछ...अपने प्रवाह में
'कोसी' भटक रही है खानाबदोश अपंनी ही तलाश में
व्यवस्था/ चहरो से मुखोटे उतर गये है
संडास भरे प्रश्न फिर से पसर गये है
बिस्तर -बिछौने
आले की लालटेन
खुटी से बस्ते कापी ,पेन
बदहवास 'कोसी' ले गई कितना कुछ...अपने प्रवाह में
'कोसी' भटक रही है खानाबदोश अपंनी ही तलाश में
व्यवस्था/ चहरो से मुखोटे उतर गये है
संडास भरे प्रश्न फिर से पसर गये है
7 comments:
दिल दहल गया पढ कर !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी अपने शैशवावस्था में है. आईये इसे आगे बढाने के लिये कुछ करें. आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत् में,
खूब लिखें, अच्छा लिखें - शुभकामनाएँ.
bahut maarmik aur vidambna ko roti kavita
मृत्युञ्जय जी,
सुन्दर भाव और शब्द संयोजन। लिखते रहें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
कोसी' भटक रही है खानाबदोश अपंनी ही तलाश में
स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत् में,
आपने यथार्थ को हाई क्यु में बहुत सुंदर पिरोया है
बहुत सटीक लिखा है आपने हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
बहुत ही मार्मिक वर्णन
पर कोसी का सच यही था
सादर
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