Saturday, September 20, 2008


हमने कब रिवोजो, कि परवाह की है
बस वक्त के इशारों, की परवाह की है


जिन के सिरों पर नही बाम अब
किसने ऐसी दीवारों, की परवाह की है


वैसे तो हम मकरुज नही थे किसी के मगर
जाने क्यों तेरे तकाजों, की परवाह की है


ये अंधेरे मेरी ख्वाहिशों का अंजाम नही
हमने तो बस तेरे इरादों, की परवाह की है

बाम = छत मकरुज = कर्जदार

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