Monday, October 6, 2014

इन दिनों

दिन गुज़र रहे है
कुछ एेसे
अहसासों के तले-
हाथों में लगता
घुल रही है
जैसे तेरे हाथों की महक,
कभी लगता है,
छत पे खड़ी अकेली धूप बुला रही है मुझे,
कभी होती है मेरे करीब
तेरे कदमों की आहट,
और
यूँ भी लगता कभी
'मत्था टेकने ' साथ मेरे झुका है कोई।
खुद के गुम होने / किसी का खुद मे होने के अहसास में,
दिन गुजर रहे है
कुछ ऐसे इन दिनों। 

Tuesday, September 23, 2014


||ख़ामोशी||
कोई वजहा थी ,
या नहीं
उसके आने की ..
मैंने पूछा नहीं ............
क्यूँ ? देर तक ठहर गई 
मुझमे
उसने भी बताया नहीं |
मगर, जाते -जाते
इतना जरुर कह गई " ख़्याल रखना अपना "
कैफियत
हर लम्हा
यँहा ज़ाहिर करनी है तुम्हे
यँहा हर रिश्ता मोहताज़ है
अल्फ़ाजों का,
कोई मेरी तरह सुन सके तुम्हे
बेशक तब मेरा दायरा 
तुम तोड़ देना |

Tuesday, March 8, 2011

जिसने सच कहा

जिसने सच कहा उसका बुरा हाल, होगा |
अब इस माहौल में जीना मुहाल, होगा |

दोस्त सच्चे हो तो आईना किस लिए ,
साथ अपने इस सामान पर मलाल, होगा |

है अपनी सूरते -रंग अपने ही हाथों में
वरना, तेरा अक्स तेरे हाथों बेहाल, होगा |

जिस शफ़क ने उठाया झूठ से पर्दा ,
वजूद पर उस के ही अब सवाल, होगा |

Sunday, February 13, 2011

बसंत की स्नेहिल कामनाओं सहित -

प्रेम -पुष्प, सुगंध की तलाश, बसंत |
बासंती,गुलमोहर,पलाश बसंत|

पल-पल पाते विस्तार प्रकृति के रंग,
स्वच्छंद विचरता मोहपाश, बसंत |

धुप - छाँव, सुख दुःख गतिशील सदा,
मधुबन को लौटाता विश्वास ,बसंत |

अलंकृत धरा दहलीज फागुन सत्कार ,
कण-कण प्रकृति में प्रतीत श्वास बसंत |

Tuesday, December 7, 2010

तुम को देखे हुवे कितने दिन हुऐ |
कुछ कहे सुने, कितने दिन हुऐ |

छोड गई नदिया सूखे किनारे,
बहता पानी छुवे, कितने दिन हुऐ |

मै अपने बचपन को आवाज़ देता रहा,
माँ के दामन में छुपे, कितने दिन हुऐ |

जी रहे है यूँ लगता है किसी की मर्ज़ी है,
साँसे हाथों से चुने, कितने दिन हुऐ |

Thursday, September 3, 2009

बाज़ार

उठती है निगाह जिधर बाज़ार नज़र आता है |
कोई बिकता हुआ कोई खरीदार नज़र आता है |

सिर्फ जरूरतों के उसूल पर जीता है जमाना ,
जो न किसी काम का वो बेकार नज़र आता है |

आते-जाते हर शख्स की है निगाह मुझ पर,
शायद मुझमे कोई कारोबार नज़र आता है |

ख्वाहिशो के दश्त में हर आदमी गुम है,
रूह है गिरवी जेबों में उधार नज़र आता है |